#BoycottJAASHNESHAHEEN
#ISTANDUNITEDWITHKASMIRIPANDITS
#AGAINSTJASHNESHAHEEN
#STANDUNITED
आज ट्वीटर पर एक पोस्ट देखा, मैं स्तब्ध रह गया देख कर, इतनी संवेदनहीनता, इतना द्वेष। ये किस तरह का सेकुलरिस्म है, जहां भारत में ही शरणार्थी के तौर पर रहने को मजबूर कश्मीरी पंडित हिन्दू जो पिछले तीस साल पहले अपने ऊपर हुए बर्बरता के लिए न्याय मांग रहा है, और उनकी सुनने वाला कोई नहीं। कोई उनके लिए प्रोटेस्ट नहीं करता। इनको इस कदर भुला दिया गया है, जैसे कोई रात के बुरे सपने को सुबह होते भुला देता है। ये कैसा सेलेक्टिव और तुष्टीकरण वाला सेकुलरिस्म है, जो हमेशा एक वर्ग के लिए लागू होता है।
देश में बहुसंख्यक के तौर पर मगर घाटी में अल्पसंख्यक होने के बावजूद, इतनी अकल्पनीय बर्बरता से गुजरने के बावजूद और अपनी आँखों के सामने अपनों को खोने के बावजूद इन कश्मीरी हिंदुओं ने कभी बंदूक नही उठाया, किसी की हत्या नहीं की। देश के खिलाफ नारे नहीं लगाए, बसे नहीं जलाईं, पत्थरबाज़ी नही की और न ही कभी अपनी बात मनवाने के लिए महिलाओं और बच्चों का सहारा लिया, बस न्याय मांगते रहे चुपचाप। और शर्म की बात तो यह है की इनकी इंसाफ की लड़ाई में अपनों ने ही साथ नहीं दिया।
ख़ैर जिस ट्वीट की बात कर रहा हूँ मैं वो एक आमंत्रण है “जश्न-ए शाहीन” जिसे 19जनवरी 2020 को रखा गया है शाहीन बाग में। और आमंत्रण दे रही है एक मानसिक तौर पर विक्षिप्त, तथाकथित बुद्धिजीवी, ज़हरीली सोंच रखने वाली Swara Bhasker। जिसे ये तक नहीं पता, या फिर कहें बखूबी पता है 19 जनवरी कौन सा दिन है। और जिस कारण वो 19 जनवरी को ही ये जश्न माना रही है। तमाम जगहों को तथाकथित प्रदर्शन के जरिये बंद कर पुराना कश्मीर बनाने की जो ज़िम्मेदारी तुम्हारे जैसों के कंधों पर दी गई है न, अब पूरा नहीं होगा ये। हाँ एक और बात बता दूँ, अब खामोशी नहीं जवाब मिलेगा….याद रखना।
19th जनवरी 1990 मानवता के इतिहास का वह काला दिन जिसे भारत और जो वाकई भारतीय कहलाने लायक हैं कभी भूल नहीं सकते। वह भयानक दहशतगर्द रात हजारों कश्मीरी पंडितों का नरसंहार किया जाता है जबरन उन्हें अपनी जमीन छोड़कर जाने को मजबूर किया जाता है घर के बाहर पर्चा चिपका दिया जाता है इसमें लिखा होता है यह कश्मीर और अपनी महिलाओं को यही छोड़ कर चले जाओ अगर अपनी जान की सलामती चाहते हो तो। नारा लगता था –
“कश्मीर बनेगा पाकिस्तान पंडित आदमियों के बगैर मगर पंडित महिलाओं के साथ”।
महिलाओं को स्टोर रूम में छुपा दिया गया था यह कहने की जरूरत नहीं थी की भीड़ हमला करें तो स्वयं को वह आग लगा ले। 60,000 से भी ज्यादा कश्मीरी पंडितों का नरसंहार किया गया, उनकी महिलाओं, बच्चियों के साथ बलात्कार किया गया, उनका घर जला दिया गया और रातों-रात अपने ही मुल्क में शरणार्थी बना दिया गया उन्हें। और आज 30 साल बीत गए हैं, आज भी वह शरणार्थी ही हैं। इतनी सहनशीलता कोई नहीं दिखा सकता और दूसरों से तो हम अच्छी तरह वाकिफ हैं।
इन्हीं कश्मीरी हिन्दुओं में एक शिक्षिका थीं ‘गिरजा टिक्कू’ जिनकी बर्बरता की दास्तान ऐसी भयानक थी की रूह काँप जाए। किसी तरह वो कश्मीर से उन दिनों बच कर निकालने में सफल हो जाती हैं ,लेकिन एक दिन उन्हें स्कूल से फोन आता है की वो अपनी बची हुई सैलरी आ कर ले जाएँ। वह स्कूल में अपनी सैलरी लेने गयी। सैलरी लेने के बाद उसी गाँव में अपनी एक मुस्लिम सहकर्मी के घर मिलने चली गयी. आतंकी उस पर नज़र रखे हुए थे। गिरिजा को उसी घर से अपहृत कर लिया गया।
सौजन्य- JK NOW
आतंकियों ने गिरजा के अपरहण के बाद उसे से कई बार सामूहिक बलात्कार किया। उसे तरह-तरह की यातनाएँ दी। इतने से आतंकियों का मन नहीं भरा तो उन्होंने गिरिजा को बिजली से चलने वाले आरे पर रख कर जिंदा बीच से काट दिया। आतंकियों का सन्देश साफ़ था की जम्मू कश्मीर में केवल “ निज़ाम –ऐ- मुस्तफा “ को मानने वाले लोग ही रह सकते है। और इस किस्म की बर्बरता उस वक़्त न जाने कितनों पर गुज़री।
यह बर्बरता सिर्फ 1990 मे ही नहीं हुई आगे भी जारी रही। मार्च 1997 आतंकियों ने संग्रामपोरा में घर से खींच कर 7 पंडितों को मारा। जनवरी 1998 आतंकियों ने वंधामा में 23 कश्मीरी पंडित जिसमे बच्चे और महिलाएं थी उनकी निर्मम हत्या की। और मार्च 2003 आतंकियों ने नदिमार्ग में 24 पंडितों जिसमें महिलाएं और नवजात शिशु थे उनकी गोली मार कर निर्मम हत्या कर दीं। अकल्पनीय और अमानवीयता की पराकाष्ठा। महसूस करिए उनकी बेबसी को, उनके डर को, उनके प्रति हमारी संवेदनहीनता को।
इतना बड़ा अधर्म….उफ़्फ़!
सोंचने की बात है 5 लाख कश्मीरी पंडितों को उनके ही ज़मीन से भागने पर मजबूर कर दिया जाता है। आतंकियों द्वारा उन्हें विकल्प दिया जाता है की या तो वे इस्लाम कबूल करें, या फिर भाग जाएँ या फिर मारे जाएँ।
तो ये बताएं,
– की अपने आज़ाद देश में वहाँ के नागरिकों के सामने जब ऐसे विकल्प रखे जाते हैं तब संविधान को चोट पहुँचती है, या फिर तब जब वो सताए गए लोगों को नागरिकता देती है ?
– आज के स्थिति पर लोग कह रहे हैं संविधान, लोकतन्त्र खतरे में है, वो भी सिर्फ इसलिए की पड़ोसी देशों में धार्मिक आधार पर सताए गए अल्पसंख्यकों को देश नागरिकता दे रही है, लेकिन 30 साल पहले जो कश्मीरी पंडितों के साथ हुआ था तब लोकतन्त्र खरते मे नहीं आया था, तब किसी ने ये नहीं कहा की संविधान खतरे में है। क्यूँ ?
अगर अब भी किसी को मेरी लिखी बातें समझ नहीं आईं तो उनसे मेरी सहानुभूति है। क्योंकि आगे भी उन्हें कभी समझ में नहीं आनी। और जिनको बुरा लगा है, दर्द हुआ है वो एस्प्रिन लें।
क्योंकि ये जो आवाज है न, उन हिन्दुओं की है जिन पर शुरू से ही अत्याचार होता रहा, उनके साथ बर्बरता होता रहा। फ़िर भी सब कुछ भुला कर इन्होंने सब को हर बार अपनाया, मग़र इन्हें अपनाने के लिए दूसरे कभी तैय्यार नहीं हुए।
इनके न्याय, इनके हक़ के लिए कभी कोई खरा नहीं हुआ, कोई सिलेब्रिटी नहीं पहुंची इनके पास, कोई मानवाधिकार वाला नहीं आया इनके पास, किसी ने इनके लिए प्रदर्शन नहीं किया, भटकने के लिए छोड़ दिया बस। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा, अब बस जवाब मिलेगा।
जय हिन्द….भारत माता की जय…… वंदे मातरम
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